यह पर्व सिंधी नववर्ष की शुरुआत का प्रतीक भी है और इसे उल्लास व आस्था के साथ मनाया जाता है। भगवान झूलेलाल का जन्म 10वीं शताब्दी में सिंध (अब पाकिस्तान) में हुआ था। उस समय मीरख़ शाह नामक शासक ने हिंदुओं पर जबरन इस्लाम स्वीकार करने का दबाव बनाया। तब भगवान झूलेलाल ने धार्मिक सहिष्णुता, प्रेम और एकता का संदेश दिया और हिंदू धर्म की रक्षा की। इसलिए, उन्हें सिंधियों का रक्षक माना जाता है।
भगवान झूलेलाल को जल देवता वरुण का अवतार माना जाता है। इस दिन लोग नदियों, तालाबों और समुद्र के किनारे जाकर पूजा करते हैं और “बहाणा साहिब” की भव्य शोभायात्रा निकालते हैं। इस शोभायात्रा में भगवान झूलेलाल की झांकी सजाई जाती है और भक्त “झूलेलाल जी जयकारा” लगाते हैं।