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उत्कल समाज के मुताबिक चिरमिरी में 1980 के दौरान कोयला खदानें खुली थीं। उस समय कोयला खदान में काम करने ओडिशा से बड़ी संख्या में मजदूर आए। एसईसीएल में लोडर (जनरल मजदूर) का कार्य करते थे। सेवानिवृत्त के बाद वे चिरमिरी में ही बस गए हैं। लेकिन आराध्य देवता महाप्रभु जगन्नाथ की पूजा अर्चना के लिए हर महीने जगन्नाथ मंदिर पुरी जाते थे। एसईसीएल से छुट्टी लेने के कारण उत्पादन प्रभावित होता था। इसे देखते हुए उस समय पुरी जगन्नाथ मंदिर के समान दूसरा मंदिर बनाने का संकल्प लिया।
वर्ष 1981 में एनसीपीएच कॉलरी में कार्यरत एच.के. मिश्रा ने नीलगिरी पहाड़ पर ध्वज फहराया और 1982 में नीलगिरी पहाड़ पर जगन्नाथ मंदिर बनाने का कार्य प्रारंभ हुआ। परिसर में माता विमला और महालक्ष्मी मंदिर पूरा होने के बाद जगन्नाथ मंदिर निर्माण पूरा माना जाएगा। मंदिर तक पहुंचने 50 सीढि़यां बन रही हैं।

ये हैं विशेषताएं

  • मंदिर का निर्माण ओडिशा के गंजाम जिले के मथुरा गांव के कारीगरों ने किया।
  • महंत कल्पतरु महाराज की देखरेख निर्माण कर 2006 में प्राण प्रतिष्ठा हुई।
  • जगन्नाथ मंदिर को ओडिशा पुरी के बाद दूसरा बड़ा मंदिर माना जा रहा है।
  • मंदिर परिसर 63 एकड़ में फैला हुआ है। यहां पौधरोपण भी किया गया है।
  • पुरी की तर्ज पर महाप्रभु जगन्नाथ, सुभद्रा व बलराम की प्रतिमाएं स्थापित हैं।
  • पहाड़ पर मंदिर होने के कारण पहुंचने के लिए 50 सीढि़यां बनाई गई हैं।

पुरी के ट्रस्ट की अनुमति से लाई थी लकड़ी

जगन्नाथ सेवा संघ के मुताबिक मंदिर निर्माण कराने से ओडिशा के राजा दिव्य सिंहदेव और पुरी के ट्रस्ट की अनुमति से लकड़ी लाई गई थी। फिर पुरी जगन्नाथ मंदिर में जिस नीम की लकड़ी से मूर्ति बनी थी, उसी लकड़ी से चिरमिरी में भगवान जगन्नाथ की प्रतिमा बनाई गई है।

बहुत जल्द मंदिर तैयार

पोड़ी जगन्नाथ मंदिर पुरी की तर्ज पर बना है। नीलगिरी पहाड़ी का एरिया करीब 63 एकड़ है। जहां मंदिर निर्माण हुआ है। बहुत जल्द मंदिर तैयार हो जाएगा।
नारायण नाहक, अध्यक्ष श्री श्री जगन्नाथ सेवा संघ चिरमिरी

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