4078145881738806504
14271021545470334915

दंतेश्वरी मां की महिमा पूरे विश्व में विख्यात है. दिवाली के दिन इस मंदिर में विशेष पूजा अर्चना होती है. दशहरा पर्व में जगदलपुर से मां दंतेश्वरी की डोली दंतेवाड़ा लौटती है. उसके 9 दिन बाद दीपावली की शुरुआत होती है. मां के दरबार को दियों की रोशनी से रोशन किया जाता है. दंतेवाड़ा मंदिर में जो दिये जलाएं जाते हैं,वो हर साल कुम्हार बस्ती में रहने वाले कुम्हार तैयार करते हैं.कुम्हार हर साल मां के दरबार के लिए दीये बनाकर उन्हें मंदिर को देते हैं.ये परंपरा सदियों से इसी तरह से जारी है.इन्हीं दीयों से पूरे मंदिर को सजाया जाता है.

सेवादारों में एक तुड़पा समाज का भी सेवादार होता है. तुड़पा समाज का सेवादार दिवाली से 9 दिन पहले से ही मां दंतेश्वरी सरोवर से रात के तीसरे पहर में पानी लाने के लिए निकल जाता है. मिट्टी के घड़े में दंतेश्वरी सरोवर से पूजा अर्चना कर 12 लकवारों के साथ जल जाता है.

परंपरा मुताबिक कतियार राउत समाज के लोग जंगल से जड़ी बूटी खोजकर लाते हैं. लाई गई जड़ी बूटी को मिट्टी के हांडी में हल्की आंच पर उबाला जाता है. फिर उबाले गए जल को छानकर मां के स्नान के लिए लाए गए पानी में मिलाया जाता है. इसी जड़ी बूटी वाले पानी से मां को स्नान कराकर इसी पानी से दवाई बनाई जाती है. औषधि बनने के बाद सभी 12 लंकवार सेवादारों को मिट्टी की हांडी में ये दवा पीने के लिए परोसी जाती है. बाकी की बची हुई औषधि को गांव वालों और भक्तों के बीच बांटा जाता है. मान्यता है कि बांटी गई दवा से हर गंभीर बीमार जड़ से खत्म हो जाती है.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *