छत्तीसगढ़ के रायपुर में हर वर्ष 5 जनवरी को राष्ट्रीय पक्षी दिवस मनाया जाता है, जो हमें पक्षियों के महत्व और उनके संरक्षण की आवश्यकता को याद दिलाता है। पक्षी न केवल हमारी पारिस्थितिकी तंत्र का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं, बल्कि वे पर्यावरण में संतुलन बनाए रखने में भी अहम भूमिका निभाते हैं।
छत्तीसगढ़ जैसे विविध जैविक विविधता वाले प्रदेश में पक्षियों की प्रजातियों की संया काफी है, लेकिन प्राकृतिक आवासों का नुकसान और शिकार जैसी समस्याओं के कारण कई प्रजातियां संकट में हैं।
छत्तीसगढ़ में पक्षियों की बहुत सी प्रजातियां पाई जाती हैं। यहां के जंगलों और जलाशयों में सैकड़ों किस्म के पक्षी आते हैं, जिनमें से कुछ प्रसिद्ध हैं, जैसे पहाड़ी मैना, कोयल, दूधराज, मोर और बगुला। यह प्रदेश न केवल निवास स्थान के रूप में महत्वपूर्ण है, बल्कि प्रवासी पक्षियों के लिए भी एक प्रमुख स्थल है। पक्षी कीटों को नियंत्रित करते हैं, बीजों का फैलाव करते हैं, और प्राकृतिक वनस्पतियों की वृद्धि में मदद करते हैं। इसके अलावा, पक्षी जलाशयों के पारिस्थितिकी तंत्र में भी अहम भूमिका निभाते हैं, जहां वे जल जीवन को बनाए रखने में मदद करते हैं। उनके बिना, पर्यावरण में असंतुलन हो सकता है।
छत्तीसगढ़ में कई प्रवासी पक्षी आते हैं, जो सर्दियों आते हैं और गर्मियों में चले जाते हैं। इनमें गार्गनीज़, टफ़्टेड डक, और साइबेरियन स्टोनचैट जैसे पक्षी प्रमुख हैं। इसके अलावा, यहां विदेशी पक्षियों की भी उपस्थिति होती है जैसे कि ब्लैक स्वान, कार्लोलाइन डक, क्रिसटेड डक, और मस्कोवी डक। बस्तर के शाहवाड़ा और कोरबा के कनकी जैसे गांवों में भी एशियन ओपन बिल स्ट्रोक का संरक्षण किया जाता है।
इन गांवों में पक्षियों को सुरक्षा देने के लिए स्थानीय लोग और वन विभाग मिलकर कार्य करते हैं। छत्तीसगढ़ में इन दिनों पक्षियों के सामने कई चुनौतियां भी हैं। प्राकृतिक आवासों का नुकसान पहुंचाना, शिकार और प्रदूषण जैसी समस्याएं भी उनके अस्तित्व को संकट में डाल रही हैं। इन समस्याओं के समाधान में सरकार और पर्यावरण प्रेमियों के सहयोग के अलावा लोगों को भी जागरूक कर पक्षियों के संरक्षण के लिए कदम उठाना जरूरी है।
लचकेरा में प्रवासी पक्षी आए
जिला मुख्यालय से 80 किलोमीटर दूर बसा लचकेरा गांव इन दिनों प्रवासी पक्षियों के आगमन से खुशहाल है। मानसून के साथ ही एशियन ओपन बिल स्ट्रोक पक्षी यहां प्रजनन के लिए पहुंच रहे हैं। ग्रामीण इन पक्षियों को देवदूत मानते हैं। इनकी उपस्थिति को अच्छे मानसून और फसल के संकेत के रूप में देखते हैं। इस गांव में इन पक्षियों की सुरक्षा के लिए 1000 रुपए का अर्थदंड और सूचना देने वालों को 300 रुपए का इनाम दिया जाता है।